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शब्दार्थ
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती
दे० देवानुपिय त तथारूप अ० अरहंत भ० भगवन्त का ना नाम गोत्र म० श्रवण से कि क्या पु०१, फीर अ. अभिगमन वं. वंदन न० नमस्कार प. पुच्छा प० पर्युपासना से ए० एक आ० आर्य ध.* धर्म का सु० मुवचन स सुनने से कि क्या वि• विपुल अ• अर्थ का ग• ग्रहण करने से तं० उन कोई ग. जावे दे. देवानुप्रिय स० श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर को वं. वांदे न० नमस्कार करे जा०
तं महाफलं खलु देवाणुप्पिए तहारूवाणं अरहताणं भगवंताणं णामगोयस्सवि सवणयाए किमंगषुण अभिगमण बंदण णमंसण पडिपुच्छण पज्जुवासणयाए, एगस्सवि आरियस्स धाम्मयस्स सुवयणस्स सवणयाए किमंगपुण विपुलरस अट्ठस्स गहणयाए, तं गच्छामोणं देवाणुप्पिए समण भगवं महावीर वंदामो णमसामो जाव
423 नववा शतक का तत्तीसवा उद्देशा
भगवन्त महावीर आदि के करनेवाले यावत् सर्वज्ञ सर्वदर्शी आकाशगत चक्र से यावत् सुखपूर्वक विचरते हुवे बहुशाला उद्यान में यथोक्त आज्ञा याचकर विचरते हैं. ऐसे तथारूप अरिहंत भगवंत के मात्र नाम गोत्र
श्रवण करने से ही महा फल होता है तो फीर उन को आभिगमन, वंदन नमस्कार यावत् पर्युपासना ७ करने का कहना ही क्या ? एक आर्य धर्म श्रवण करने का महा फल होता है तो फीर विपुल अर्थ
ग्रहण करने का कहना ही क्या है इसलिये अपन श्रमण भगवंत. महावीर स्वामी की पास जावे और
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