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शब्दार्थ
मावाथ
49 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
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० उस काल ते ० उस समय में मा० माहणकुंड ग्राम न० नगर हो० था व० वर्णन युक्त व० बहुशाल {चे० चैत्य व वर्णन युक्त त० तहां मा० माहणकुंडग्राम नग्नगर में उ० ऋषभदत्त मा० ब्राह्मण प० रहता था अ० ऋद्धिवंत दि० दीप्त वि० वित्तवान् जा० यावत् अ० अपरिभूत रि० ऋग्देव ज० यजुर्वेद सा० ( सामदेव अ० अथर्वणवेद ज० जैसे खं० स्कंदक जा०यावत् अ० अन्य ब० बहुत बं० ब्राह्मण के न० नय में गंगेयो सम्मत्तो ॥ नवमसयस्स बत्तीसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ९ ॥ ३२ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं माहणकुंडग्गामे णामं नयरे होत्था वण्णओ बहुसालए चे वणओ, तत्थणं माहणकुंडग्गामे णयरे उसभदत्ते णामं माहणे परिवसइ, अड्ढे दित्ते वित्ते जाव अपरिभूए, रिउब्धेय जउव्वेय सामत्रेय अथव्वणवेय जहा खंदओ दुःख से रहित हुए. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यह नववा शतक का बत्तीसवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ ९ ॥ ३२ ॥
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बत्तीसवे उद्देशे में जिन मार्ग के आराधक गांगेय ( मार्ग के विराधक जमाली अनगार का कथन करते हैं.
अनगार का वर्णन कहा. तेत्तीसवे उद्देशे में जिन उस काल उस समय में ब्राह्मण कुंड नामका नगर
वर्णन योग्य था. उस की ईशान कौन में बहुशाल नामक उद्यान वर्णन योग्य था. उस ब्राह्मण कुंड नगर { में ऋषभदत्त नामक ब्राह्मण रहता था. वह ऋद्धिवंत, दीप्तिवंत यावत् अपराभूत था. ऋग्वेद, यजुर्वेद,
* प्रकाशक - राजाबहादूर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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