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एवं जाव मणूसा वाणमंतर जोइसिय वेमाणिया जहा असुरकुमारा से तेणद्वेणं गंगेया ! एवं बुच्चइ सयं वेमाणिया जाव उववजति णो असयं वेमाणिया जाव उववजंति ॥ ३३ ॥ तप्पभिइंचणं से गंगेये अणगारे समणं भगवं महावीरं पञ्चभिजाणइ
सव्वष्णू सव्व दरिसी । तएणं से गंगेये अणगारे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो है आदाहिणं पयाहिणं करेइ वंदइ णमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी इच्छामिणं
भंते ! तुब्भे अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहन्वयं एवं जहा कालासवेसिय का पुत्ते अणगारे तहेव भाणियध्वं जाव सव्व दुक्खप्पहीणे ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति भावार्थ | हैं परंतु परवशपना से नहीं उत्पन्न होते हैं. ऐसे ही मनुष्य तक कहना. वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमा
निक का असुर कुमार जैसे कहना. यावत् वैमानिक स्वयं उत्पन्न होते हैं परंतु परवशफ्ना से नहीं उत्पन्न होते हैं ॥ ३३ ॥ उस दिन से गांगेय अनगार महावीर स्वामी को सर्वज्ञ सर्वद जानने लगे. फीर गांगेय अनगार श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को तीनवार आदान प्रदाक्षणा कर वंदना नमस्कार करके ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! मैं आपकी समीप चार याम रूप धर्म से पांच महाव्रत रूप धर्म अंगीकार करने को इच्छता हूं वगैरह जैसे कालामबोशित पुत्र का कहा वैसे है। यहां जानना. यावत् गांगेय अन्गार सब है।
पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र *
< 48नयां शतकका बत्तसिवा उद्देशा848