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ammovarana
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११ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी 22
सयं असुरकुमारा असुरकुमारत्ताए जाव उववजांति णो असयं असुरकुमारा जाव उववजंति, से सेणटेणं जाव उववजंति ॥ एवं जाव थणिय कुमारा ॥ ३२ ॥ सयं भंते ! पुढवीकाइया पुच्छा ? गंगया ! सयं पुढवी काइया उववजति णो असयं जाव उववजति ॥ से केणटेणं जाव उववज्जति ? गंगेया ! कम्मोदएणं कम्मगुरुयत्ताए कम्मभारियत्ताए कम्मगुरुयसंभारियत्ताए सभासुभाणं कम्माणं उदएणं, सुभा सुभाणं कम्माणं विवागणं मुभामुभाणं कम्माणं फलविवागणं मयं पुढवी काइया
जाव उववजंति, णो असयं पुढवी काइया जाव उववजंति सेतेणटेणं जाव उववजंति शुभ कर्म के विपाक से व शुभ कर्म के फर विपाक से असरकुमार स्वयं असुर कुमारपने में उत्पन्न होते हैं. परंतु परवशपनासे नहीं उत्पन्न होते हैं. ऐसे ही स्थनित. कुमार तक जानना ॥ ३२ ॥ पृथ्वीकाय मयं पृथीकाय में उत्पन्न होवे इनकी पृच्छा करत हैं ?अहो गांगेय! पृथ्वीकाय स्वयं पृथ्वीकाय में उत्पन्न होते हैं
परंतु परवशपना से नहीं उत्पन्न होते हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐमा कहते हो ? अहो गांगेय ! * कर्मोदय से, कर्मों की गुरुता से, कर्मों के वजन से, कर्मों की गुरुता से व वजन से. शुभाशुभ कर्मों के
उदय से, शुभाशुर कर्मों के विपाक से व शुभाशुभ कर्मों के फल विषाकं से पृथ्वीकाय स्वयं उत्पन्न होते
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ