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भंते ! एवं वुच्चइ जाव उववजंति ? गंगेया ! कम्मोदएणं कम्म गुरुयत्ताए कम्म भारियाए, कम्मगुरुयसंभारियत्ताए असुभाणं कम्माणं उदएणं असुभाणं कम्माणं विवागेणं, असुभाणं कम्माणं फल विवागणं सयं णेरइया णेरइएसु उववजंति से तेण?णं गंगेया ! जाव उववर्जति, ॥३१॥ सय भंते! असुरकुमारा पुच्छा ? गगयो! सयं असुरकुमारा उववज्जति णो असयं असुर कुमारा उववजंति ॥ से केणटेणं चित्र जाव उववजंति?गंगेया! कम्मोदएणं कम्मोवरमेणं कम्मवियइए कम्मविसोहीए कम्मवि
सुडीए सुभाणं कम्माणं उदएणं सुभाणं कम्माणविवागेणं सुभाणं कम्माणं फलविवागणं उदय से, कर्म की गुरुता से, कर्म के वजन से, कर्म की गुरुता व वजन से, अशुभ कर्म के उदय से, अशुभ कर्म के विपाक से, और अशुभ कर्म के फल विपाक से नारको स्वयं नरक में उत्पन्न होते। गांगेय ! इसी से ऐसा कहा है कि नारकी स्वयं उत्पन्न होते हैं ॥ ३१॥ अहो भगवन् ! क्या अमुर कुमार स्वयं भुवनपति में उत्पन्न होते हैं ? अहो गांगेय ! असुर कुमार स्वयं उत्पम होते हैं परंतु अस्वयं
नहीं उत्पन्न होने हैं. अहो भगवन् ! किस कारन स असुर कुमार स्वयं उत्पन्न होते हैं ? अहो गांगेय ! 16 कर्मोदय से, कर्मोपशम से, अशुभ कर्म की विशुदि से, कर्म प्रदेश की विशुदि से, शुभ कर्म के उदय से,
- पंचभाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
नवना शतकका बत्तीसवा उद्देशा 9848
भावार्थ