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भावार्थ
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मनि श्रा अमोलक ऋषिनी
जाव सओ वेमाणिया चयंति णो असओ वेमाणिया चयंति ॥ से केणट्रेणं भंते ! एनं वुच्चइ तंत्र जाव णो असओ वेमाणिया चयंति ? गंगेया ! केवलीणं पुरच्छिमेणं मियंपि जाणइ अमियंपि जाणइ, दाहिणणं एवं जहासदुद्देसए जाव णिबुडेणाण केवलि स्स से तेणटेणं गंगेया ! एवं वुच्चइ तंचव जाव णो असओ वमाणिया चयति॥३०॥ संयं भंते णेरइया णेरइएसु उववजंति असयं णेरइयाणेरइएसु उववजंति?गंगेया! सयं
णेरइया णेरइएसु उववजति णो असयं णेरइया रइएसु उववज्जति, ॥ से केणटेणं यह किस तरह ऐमा कहा जाता हैं यावत् अछता वैमानिक नहीं चलते हैं ? अहो गांगेय ! केवलज्ञानी पूर्व में रहे हुवे पदार्थों को मर्यादा से जानते हैं अथवा अमर्यादा से जानते हैं ऐसे ही दक्षिण पश्चिम उत्तर ऊंची नीची इन सब दिशाओं में रहे हुवे मर्यादित पदार्थ को जानते हैं, अमर्यादित पदार्थ को जानते हैं। यावत् केवल ज्ञानी निरावरण ज्ञान के धारक हैं. इस कारन से अहो गांगेय ! ऐसा कहा कि नरक यावत् असत्य उत्पन्न नहीं होते हैं व असत्य नहीं चवते हैं ॥ ३० ॥ अहो भगवन् ! क्या नारकी स्वयं नरक में उत्पन्न होते हैं या अस्वयं ( अन्य के वशसे ) नरक में उत्पन्न होते हैं ? अहो गांगेय ! नारकी स्वयं उत्पन्न होते हैं परंतु अन्य की प्रेरणा से नहीं उत्पन्न होते हैं. अहो भागवन् ! किस कारनसे नारकी स्वयं उत्पन्न होते हैं परंतु अन्य की प्रेरणा से नहीं उत्पन होते हैं ? अहो गांगेय ! कर्म के
* भकाशक-राजावहादर लाला सुखदवस हायजी ज्वालाप्रसादजी*