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________________ एणं सासएलोए वुइए अगाइए अणवदग्गे जहा पंचमेसए जाव जे लोकइ से लोए, से तेणट्रेणं गंगेया! एवं वुच्चइ जाव सोवेमाणिया चयंति णो असओ वेमाणिया चयंति ॥२९॥ सयं भंते! एय एव जाणाह उदाहु अतयं,अतोच्चा एतेवं जाणह उदाहु सोच्चा, सओ णेरइया उववजंति णो असओ जरइया उववजति जाव सओ वेमाणिया चयंति णो असओ वेमाणिया चयति ? गंगेया ! सयं एते एवं जाणामि णो असयं असोच्चा एते एवं जाणामि, णो सोच्चा सओ गेरइया उववजति णो असओ णेरइया उववजंति निक चवते हैं और अछता वैमानिक नहीं चवते हैं ? अहो गांगेय ! पुरुपादाणीय श्री पार्श्वनाथ स्वामीने से शाश्वत अनादि अनंत लोक कहा है वगैरह जैसे पांचवे शतक में यावत् जो देखा जाता है मो लोक है. आ गांगेय ! इसे ऐसा कहा गया है कि छता नारकी उत्पन्न होते हैं यावत छना वैमानिक चवते अछता वैमानिक नहीं चवते हैं. ॥ २२ ।। इस प्रकार गांगेय अनगार भगवंत को अतिशय ज्ञान संपदावंत जानकर विकल्प कहता हुवा करने लगा कि अहो भावन् ! छता नारकी उत्पन्न होते हैं : यावत् छता वैमानिक चवते हैं परंतु अछता वैमानिक नहीं चाते हैं यह आप स्वयं जानते हैं, परकीय की पाम से जानने हैं, अथवा विनामुना जानते हैं या मुनकर जानते हैं ? अहो गांगेय ! मैं स्वयं ऐसा जानता हूं, परंतु अन्य की पास से ऐसा नहीं जाना है, विना मुनाही ऐसा जानता हूं. अहो भगवन् ! 80 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र 49030 नववा शतक का बत्तीमचा उद्दशा %80 भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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