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श्री अमोलक ऋषिजी
वार्थ
समुच्छिम मणुस्स पवेसणए असंखेजगुणे ॥ २३ ॥ देव पवेसणएणं भंते ! कइविहे पणचे ? गंगेया ! चउव्विहे पणते तं जहा भवणवासि देव पवेसणए जाव वैमाणिय देव पवेसणए एगे भंते ! देवे देव पवेसणएण पवेसमाणे किं भवणवासीसु होजा वाणमंतरेसु होजा,जोइसिएसु होजा वेमाणिएसु होजा ?गंगेया! भवणवासीसुवा होज्जा वाणमंतरमुवाहोज्जा जोइसिएसुवा होज्जा, वैमाणिएसुवा होज्जा, ४ ॥ दो भंते !
देवा देव पवेसणएणं पुच्छा ? गंगेया ! भवणवासीसुवा होजा, वाणमंतरेसुवा होजा , गर्भज मनुष्य में उत्पन्न होवे ॥ २२ ॥ अहो भगवन् ! इन संमूञ्छिम व गर्भज मनुष्य में से कौन किस से अधिक यावत् विशेषाधिक है ! अहो गांगेय ! सब से थोडे गर्भज मनुष्य प्रवेशन इस से संमूच्छिम मनुष्य असंख्यात गुने ॥ २३ ॥ अहो भगवन् ! देव प्रवेशन के कितने भेद कहे ? अहो गांगेय ! देव प्रवेशन के चार भेद कहे. भवनवासी, वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक. अहो भगवन् ! एक देव ।
देव प्रवेशन से क्या भव वासी में उत्पन्न होवे, वाणव्यंतर में उत्पन्न होवे, ज्योतिषी में उत्पन्न होवे व वैमा लनिक में उत्पन्न होवे ? अहो गांगेय ! भावासी में उत्पन्न होवे वाणव्यंतर में उत्पन्न होवे, ज्योतिषी में
उत्पन्न होवे व वैमानिक में उत्पन्न होवे ऐसे चार भांग जानना. अहो भगवन् ! दो देव देव प्रवेशन से क्या भवनपति में उत्पन्न होवे यावत् वैमानिक में उत्पन्न होने ? अहो गांगेय ! दो देव भवनपति में,
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
48 अनुवादक-बालब्रह्म