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पंचमांग विवाह षण्णत्ति (भगवती) सूत्र
तिय मणुस्सेसु होजा,एवं एक्ककं उसारिएसु जाव अहवा संखेजा समुच्छिम मणुस्सेसु गम्भ वक्कंतिय मणुस्सेसु होज्जा ११ ॥ असंखेजाई भंते ! मणुस्सा पुच्छा ? गंगेया ! सव्वेवि ताव समुच्छिम मणुस्सेसु होजा, अहवा असंखेज्जा समुच्छिम मणुस्सेसु, एगे गब्भवतिय मणुस्सेसु होज्जा, अहवा असंखेज्जा समुच्छिम मणुस्सेसु, दो गब्भवक
तिय मणुस्सेसु एवं जाव असंखेजा समुच्छिम मणुस्सेसु, संखेजा गब्भवकंतिय मणु। स्सेसय होज्जा ११ ॥२१॥ उक्कोसा भंते ! मणुस्सा पुच्छा ? गंगेया! सब्वेवि ताव
समुच्छिम मणुस्सेसु होज्जा,अहवा समुच्छिम मणुस्सेसुय गब्भवतिय मणुस्सेमुय होज्जा ॥ २२ ॥ एयरसणंभंते!समुच्छिम मणुस्स पवेसणगस्स गन्भवतिय मणुस्स पवेसणगस्स
कयरे कयरे जाव विसेसाहियावा ?गंगेया ! सम्वत्थोवे गब्भवतिय मणुस्स पवेसणए संख्यात गर्भज में दो संग्राम में यावत् संख्यात संमूच्छिममें संख्यात गर्भन में वहां तक कहना. असंख्यात मनुष्य की पृच्छा. अहो गांगय ! सब संमूच्छिम में होवे अथवा असंख्यात संमूछिम में एक गर्भज में अथवा
असंख्यात संमाछममें दो गर्भनमें यावत् अथवा असंख्यात संमच्छिममें संख्यात गर्भनमें उत्पन्न होवे गर्भजी ॐ मनुष्य में असंख्यात जीव उत्पन्न नहीं होते हैं इस से संख्यात ग्रहण किये हैं. ॥ २१ ॥ अहो भगवन् !
उत्कृष्ट मनुष्य किस तरह उत्पन्न होते हैं ? अहो गांगेय ! सब संमूच्छिम में अथवा संमूच्छिम मनुष्य में ।
> नववा शतक का बत्तीसवा उद्देशा 48
नावार्थ