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48 अनुवादक - बालह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
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पर्वसमाणे किं समुच्छिममणुस्तेतुलु होजा गन्भवतिय मणुस्सेस होज्जा ? गंगेया ! समुच्छिम मणुस्संसुवा होजा, गब्भवक्कतिय मणुस्सेसुवा होजा, दो भंते! मणुस्सा पुच्छा ? गंगेया ! समुच्छिम मणुस्ससुवा होजा गन्भवकंतिय मणुस्सेसुवा होजा अहवा एगे समुच्छिम मणुस्तेस होजा, एगे गन्भवकंतिय मणुस्सेसु होजा । एवं एएणं कर्मणं जहा नेरइय पर्वसणए तहा मस्त पवेसणएव भाणियव्वे, एवं जात्र दस ॥ संखेज्जाई भंते ! मणुस्स पुच्छा ? गंगेया ! समुच्छिम मणुस्लेसुवा होजा गन्भवतिय मणुस्सुवा होजा, अहवा एगे समुच्छिम मणुस्सेसु संखेजा भवति मस्से हाजा, अहवा दो समुच्छिम मणुस्तेसु संखेजा गन्भवक्कं`शन के दो भेद कहे हैं ? संमूच्छिम मनुष्य प्रवेश २ गर्भज मनुष्य प्रवेशन: अहो भगवन् ! एक मनुष्य प्रवे(शत ने मनुष्य में उत्पन्न होने तो क्या संमूच्छिन में उत्पन्न होवे या गर्भज में उत्पन्न होवे ? अहो गांगेय ! संमूच्छिम में उत्पन्न होवे गर्भज में भी उत्पन्न होवे अथवा एक संमूच्छिम में एक गर्भज में इसी क्रम से जैसे नारकी का कहा वैसे ही वात तक करना. अहो भगवन् ! संख्यात मनुष्य वशन से क्या संमूड में उत्पन्न होते हैं. या गर्भज में उत्पन्न होते हैं ? अहो गांगेय ! उन मनुष्य में होवे अथवा गर्भज मनुष्य में होते हैं अथवा एक समूच्छिम में संख्यात गर्भज में अथवा दो संमूच्छिममें संख्यात गर्भजमें यावत्
प्रकाशक- सजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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