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सूत्र
भावार्थ
43- पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ते ( भगवती सूत्र
44-4 नवत्रा शतक का बत्तीसत्रा उद्देशा -
"अहवा एगिदिए बेइदिएमुय जाव पंचिंदिएसुय होजा ॥ १९ ॥ एयरसणं भंते ! एगिंदिय तिरिक्ख जोणिय पवेसणगस्स जाव पंचिदिय तिरिक्ख जोणिय पवेसणगस्स कयरे कयरे जाव विसेसाहियावा ? गंगेया ! सव्वत्थावे पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिय पवेसणए, चउरौिंदिय तिरिक्ख जोणिय पवेसणए विसेसाहिए, तेइदियं तिरिक्खजोणिय पवेसणएं विसेसाहिए बेइंदिय तिरिक्ख जोणिय पवेसणए विसेसाहिए, एागेंदिय तिरिक्ख जोणिय पवेसणए विसेसाहिए ॥ २० ॥ मणुस्स पवेसणएणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गंगेया ! दुविहे पण्णत्ते तंजा समुच्छिम मणुस्स पवेसणएय, गम्भवक्कंतिय मणुस्स पत्रेणएय | एगे भंते ! न्द्रियमें उत्पन्न होवे अथवा एकेन्द्रिय द्विइन्द्रियमें उत्पन्न होत्रे वगैरह जैसे नरकका कहा वैसे ही कहना. एकेन्द्रिय ( यावत् तिर्यंच पंचेन्द्रिय में द्विसंयोगी, तीन संयोगी चतुष्क संयोगी व पंच संयोगी तक भांगे कहना ||१२|| अहो! भगवन् ! इन एकेन्द्रिय तिर्यच योनिक यावत् पंचेन्द्रिय तिर्येव योनिक प्रवेशन में से कौन किस से अल्प बहुत्व यावत् विशेषाधिक है ? अहो गांगेय ! सत्र मे थोडे पंचेन्द्रिय तिच इस से चतुरेन्द्रिय विशेषाधिक इस से नेइन्द्रिय विशेषाधिक इस से द्विइन्द्रिय विशेषाधिक इस से एकेन्द्रिय तिर्यंच योनिक प्रवेशन विशेषाधिक || २० || अहो भगवन् ! मनुष्य प्रवेशन के कितने भेद कहे ? अहो गांगेय ! मनुष्य मवे
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