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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी +
भावार्थ
दो भंते! तिरिक्ख जोणिय पुच्छा ?गंगेया!एगिदिएसुवा होज्जा जाव पंचिंदिएसुवा होज्जा ५ । अहवा एगे एगिदिसु, एगे बेइंदिएसु होजा । एवं जहा णेरइय श्वे तणए तहा तिरिक्खजोणिय पवेसणएविभाणियव्योजाव असखजा।१८।उक्कोसा भंते!तिारक्खजोणिय पुच्छा ? गंगेया ! सव्येवि ताव एगिदिएसु होजा । अहवा एगिदिए य घेइंदिएमय होजा । एवं जहा णेरइया संचारिया तहा तिरिक्ख जोणियावि संचारेयव्वा, एगिदिया
अमुयतेसु दुयसंजोगो, तियसंजोगो, चउक्कसंजोगो, पंचसंजोगोय भाणियव्यो जाव तिथंच योनि प्रवेशनक यावत् पंचेन्द्रिय निर्यच योनिक प्रवेश क. अहो भगवन् ! एक जीव तिर्यंच योनि में उत्पम होता क्य एफेन्द्रिय में उत्पन्न होवे यावत् पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होने ? अहो गांगेय ! एकेन्द्रिय में यावत् पंचेन्द्रियमें उत्पन्न होवे. अहो भगवन् ! दो जीव तिर्यंच योनि में उत्पन्न होने क्या एकेन्द्रिय में उत्पन्न होवे यावत् पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होवे ? अहो गांगेय ! एफेन्द्रिय में उत्पन्न हावे यावत् पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होवे. अथवा एक एकेन्द्रिय में एक द्विइन्द्रिय में वगैरह मव भांगे नारको जैरे असंख्शात बोल तक कहना. विशेष में नरक में उत्पन्न होने के सात स्थान हैं और तिर्यंच में उत्पन्न होने के पांच स्थान हैं. नरक में असंख्यात जीव उत्पन्न होते हैं. तिथंच में एकेन्द्रियमें अनंत व द्विइन्द्रियादिमें असंख्यात जीव उत्पन्न होते ॥१८॥ अहो भगवन् ! उत्कृष्ट नीव तिर्यंच योनि में कैसे उत्पन्न होते हैं ? अहो गांगेय ! सब जीव एके-ई
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी