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णवरं असंखजाओ अब्भहिओ भाणियन्वो, सेसं तंचेव ॥ जाव सत्तग संजोगस्स पाच्छमओ आलाबगो, अहवा असखजा रयणप्पभाए असंखजा सक्करप्पभाए जाव असंखेजा अहे सत्तमाए होजा, ६,७ ॥ ३६५८ ॥१५॥ उक्कोसणं भंते ! णेरइया णेरइय पवेसणएणं पवेसमाणा पुच्छा? गंगया!सव्ववि ताव रयणप्पभाए होजा,अहवारयणप्पभाए, सक्करप्पभाएय होजा । अहवा रयणप्पभायए वालुयप्पभायए होजा, जाव अहवा रयणप्पभाएय अहे सत्तमाएय होजा ६ ॥ अहवा रयणप्पभाएय सक्करप्पभा
एय वालुयप्पभाएय होजा, एवं जाव अहवा रयणप्पभाएय, सक्करभावार्थ रत्न प्रमा में उत्पन्न होवे यावत् असंख्यात सातवी तमतम प्रभा में उत्पन्न होवे. यों असंयोगी सात से
भांगे. अथवा एक रत्नप्रभा में असंख्यात शर्कर प्रभा में वगैरह संख्यात संयोगी का कहा वैसे ही. असंख्यात संयोगी का जानना. विशेष में संख्यान के स्थान असंख्यात कहना. इस का अंतिम भांगा असं
ख्यात रत्न प्रभा में असंख्यात शर्कर प्रभा में यावत् असंख्यात तपतम प्रभा में जानना. यों सब मीलकर, 3 १३६९८ भांगे होते हैं ॥ १५ ॥ अब प्रकारान्तर से नारकी प्रवेशन कहते हैं. अहो भगवन् ! नरक में
उत्कृष्ट प्रवेशन करते हुए किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? अहो गांगेय ! सब जीव स्ल प्रभा में उत्पन होये ७०
विवाह पण्णनि (भगवती ) सूत्र 298
428 नववा शतक का बचीसवा उद्देशा
पंचांग