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दो वालुयप्पभाए संखेजा पंकप्पभाए होज्जा ॥ एवं एएणं कमेणं तिय संजोयो, चउक.... संजोगो जाव सत्त संजोगो जहा दसण्हं तहेव भाणियन्वो पच्छिमगो आलावगो सत्त संजोगस्स अहवा संखेजा रयणप्पभाए संखजा सक्करप्पभाए जाव संखेजा अहे सत्तमाए होज्जा ६१ ॥ ३३३७ ॥ १४ ॥ असंखेज्जा भंते । णेरइया गेरइय पवेसणएणं पवेसमाणा पुच्छा ? गंगेया ! रयणप्पभाएवा होजा जाव अहे सत्तमाए वा होजा ७ ॥ अहवा एगे रयणप्पभाए असंखज्जा सकरप्पभाए होजा, एवं दुयसं.
जोगो, जाव सत्तगसंजोगोय जहा संखजाणं भणिओ तहा असंखेजाणवि भाणियन्नो भावार्थ
भयोगी यावत् मात भयोगी भांगे जैसे दश के कहे वैसे ही कहना. अंतिम पालापक. संख्यात रत्न प्रभा में संख्यात शर्कर प्रभा में यावत् संख्यात तमतम प्रभा में यों संख्यात जीव आश्री सब मिलकर ३३३७ भांगे । होते हैं ॥ १४ ॥ अहो भगवन् ! असंख्यात जीव प्रवेशन मे नरक में उत्पन्न होते क्या रत्न प्रभा में
उत्पन्न होवे यावत् तमतम प्रभा में उत्पन होवे ? अहो गांगेय ! रत्न प्रभा में उत्पन्न होवे यावत् तमतम । लमभा में उत्पन्न होवे. यों एक संयोगी भांगे होते. दियोगी २५२ तीन संयोगी ८०५ चार संयोगी
१११९० पांच संयोगी ९४५ छ संयोगी ३९२ और सात संयोगी ६७ यो ३६५८ होते हैं. असंख्यात.
47 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
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• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *