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सूत्र
भावार्थ
48 पंचांग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र
सक्करपभाए संखेज्जा वालयप्पभाए होज्जा, जाव अहवा एगे रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए संखेजा अहे सत्तमाए होजा, अहवा दो रयणप्पभाए संखज्जा सक्करप्पभाए संखेज्जा वालुयप्पभाष होजा जाव अहवा दो रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए संखेजा अहे सत्तमाए होजा । अहवाणि रयणप्पभाए संखेजा सकरप्पभाए, संखेज्जा वालुभाए होजा, एवं एएणं कमेणं एक्केको रयणप्पभाए संचारेयव्यो जाव अहवा संखेजा रयणप्पभाए. संखेज्जा सक्करप्पभाए, संखेज्जा वालुयप्पभाए होजा, जाव अहवा संखेज्जा रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए, संखेज्जा अहे सत्तमाए होजां ॥ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, संखेजा पंकप्पभाए होज्जा, जात्र एगे रयणप्पभाए, एगे वायप्पभाए संखेजा अहे सत्तमाए होजा । अहवा एगे रयणप्पभाए { संख्यात तमतम प्रभा. यों इस क्रम से एक २ बढाते संख्यात रत्न प्रभा, संख्यात (शर्कर प्रभा संख्यात तमतम प्रभा तक होवे. अथवा एक रत्न प्रभा में एक शर्कर प्रभा संख्यात पंक प्रभा में यावत् एक रत्न प्रभा में एक बालु प्रभा में संख्यात तमतम मभा में अथवा एक रत्न प्रभा में दो बालु गंभों में संख्यात पंक प्रभा में यों इस क्रम से तीन संयोग चतुष्क
8वां शतकका बत्तीसवा उद्देशा
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