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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक कापजी +
सरप्पभाएवा होजा, एवं दुयसंजोगो जात्र सत्तसंजोगो जहा णत्रण्हं णवरं एकेको अब्भहिओ संचारेयत्रो सेसं तंचेव पच्छिमो आलावगी अहवा चत्तारि रयणप्पभाए एमे सकरप्पभाए, जब एगे अहे सत्तमाए होजा, ८४ ॥ ८००८ ॥ १३ ॥ संखेज्जा भंते! णेरड्या णेरइय पवेसणएणं पवेसमाणा पुच्छा ? गंगेया ! स्यणप्पभाएवा होज्जा, जाव अहवा अहे सत्तमाए होज्जा, अहवा एगे रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए, एवं जाव, अहवा एगे रयणप्पभाए संखज्जा आहेसत्तमाए होजा || अहवा दो रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए होजा एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए संखेज्जा अहे सत्ताए होजा अहवा तिििण रयणप्पभाए होजा, संखेज्जा सक्करप्पभाए होजा एवं
तमतम प्रभा में उत्पन्न होवे यों असंयोगी ७ भांगे हावे. द्विसंयोगी १८९ भांगे, तीन संयोगी १२६० चतुष्क संयोगी २९४० पांच संयोगी २६४० छ संयोगी ८८२ और सात संयोगी ८४ यो सब मीलकर ८००८ भांगे होते हैं ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! संख्याते नारकी प्रवेशन से नरक में उत्पन्न होते क्या र० में यावत् । तमतम प्रभा में उत्पन्न होवे ? अहो गांगेय ! संख्याते नारकी र० में यावत् तमतम प्रभामें उत्पन्न होवे. यह अ संयोगी ७ भांगे हुवे, द्विसंयोगी २३१ तीन संयोगी ७३५ चार संयोगी १०८५ पांच संयोगी ८६१ छ संयोगी ३५७ और सात संयोगी ६१ पद होवे सब मिलकर ३३३७ भांगे होते हैं: एकर में संख्यात श० में यावत् एक र० में
* प्रकाशक - राजावहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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