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सूत्र
भावार्थ
पवेसण एणं पत्रेसमाणा किं रयणप्पभाए होजा ? गंगेया ! रयणप्पभाएवा होज्जा, जाव अहे सत्तमाएवा होजा ७ । एगे रयणप्पभाए सत्त सक्करप्पभाए होजा, एवं दुयसंजोगो १४७ ॥ तियसंजोगो ७३५ चउक्कजोगो १२२५ ॥ पंच संजोगो ७३५ ॥ जाव छक्कसंजोगोय जहा सत्तहिं भणियं तहा अट्टहावि भाणि - यव्वं, णवरं एक्केको अब्भहिओ, सेसं तंचेव जाव छक्कसंजोगस्स अहवा तिण सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, जाव एगे अहे सत्तमाए होज्जा ॥ १४७ ॥ अहवा एगे रयणप्पभाए जाव दो तमाए, एगे अहे सत्तमाए होजा । एवं संचारेयव्वं, जाव अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, जात्र एगे अहे सत्तमाए होजा ७ ॥ ( रत्नप्रभा में उत्पन्न होवे यावत् मातवी तम तम प्रभा में उत्पन्न होवे ? अहो गांगेय ! आठों नारकी रत्नप्रभा { में यावत् तम तम प्रभा में उत्पन्न होत्रे यो असंयोगी सात भांगे हुए. एक रत्नप्रभा में सात शर्कर प्रभा { में ऐसे द्विसंयोगी १४७ भांगे होवे क्यों कि सात नरक के द्विसंयोगी २१ पद होते हैं और आठ जीवों के (द्वियोगी सात विकल्प होते हैं इस से १४७ भांगे होवे तीन संयोगी के ७३५ भांगे होवे क्योंकी पद ३५ { हैं और विकल्प २१ होते हैं इस से ७३५ भांगे होते हैं. चतुष्क संयोगी १२२५, पांचसंयोगी ७३२
छ संयोगी १४७ सात संयोगी ६ यों सब मीलकर ३००३ भांगे सात संयोगी के जैसे कहे वैसे कहना ॥ ११ ॥
48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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