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________________ पंचमांग विवाह पण्णनि (भगवती) मूत्र सेसं तंचेव १२६ ॥ तिय संजोगो ५२५ ॥ चउक्कसंजोगो ७०० ॥ पंचसंजोगो ३१५ ॥ छक्कसंजोगोय छण्हं जहा तहा सत्तण्हंवि भाणियव्वं, णवर एकेको अब्भहिओ, संचारेयव्वो, जाव छक्कसंजोगा, अहवा दो सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए जाव एगे अहे सत्तमाए होजा, ४२ ॥ अहवा एगे रयणप्पभाए, एमे सक्करप्पभाए जाव एगे अहे सत्तमाए होजा १७१६ ॥ १० ॥ अट्ठ भंते !, रइया गेरइय पद होते हैं इस तरह दोनों का गुनाकार करने से ४२ भांगे होते हैं और सात संयोगी एक भांगा होता भी है यों सब मीलकर १७१६ भांगे सात जीव आश्री होते हैं. अब उप्त का विवरण करते हैं. सातों ही रत्नप्रभा में उत्पन्न होवे यावत् स्वातों ही सातवी तम तम प्रभा में उत्पन्न होवे. अथवा एक रत्नप्रभा में छ शर्कर प्रभा में ऐसे ही इस क्रम से जैसे छ जीव के द्विसंयोगी भांगे कहे वैसे कहना परंतु इसमें एक अधिक कहना यों १२६ भांगे होते हैं. तीन संयोगी ५२५ होते हैं. चतुष्क संयोगी ७०० भांगे पांच संयोगी ३१५१ छ संयोगी ४२ भांगे जैसे छ जीव आश्री कई वैसे ही सात जीव आश्री जानना. विशेष में एक २ अधिक बहाना. इसका अंतिम भांगा दो शर्कर प्रभा में, एक बालुमभामें, एक पंकमभामें, एक धूम्रप्रभा में एक तमप्रभा १ और एक तम तम प्रभा में और सात संयोगी एक भांगा होता यो सात जीव भाश्री सब मीलकर .११७१६ भांगे हुए ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! आठ नारकी नरक गति में प्रवेशन से प्रवेश करते हुए क्या 48नववा शतक का बत्तीसवा उद्देशा .
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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