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सूत्र
भावार्थ
409 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
तारि
पंक पाए है. ज्जा, एवं जात्र अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, अहे सन्तमाए होजा, अहवा एगे रयणप्पमाए, दो सक्करष्पभाए, तिष्णि वालुयप्पभाए होजा, एवं एएणं कमेणं जहा पंचन्हं तिय संजोगो भणिओ तहा छण्हवि भाणियव्वो, वरं एक्को अब्भहिओ उच्चारेयव्वो सेसं तंचेव ३५० ॥ चउक्क संजोगोवि तहेत्र ३५० ॥ पंच संजोगोवि तहेव णवरं एको अब्भहिओ संचारयव्वो जात्र पच्छि• २० में पांच तमतम प्रभा में यों ६ भांगे अथवा दो ० चार तमतम प्रभा में यों ६ भांगे. तीन र० में तीन श० में प्रभा में इसी क्रम से जैसे पांच जीवों के दो संयोगी कहे अधिक कहना यावत् १०५ वां भांगा पांच तः अब तीन संयोगी ३५० भांगे कहते हैं.
तीन
तमतम
में चार श० में यादव दो र० में यावत् तीन २० में वैसे ही जानना. में एक समतम प्रभा में एक श० में भार वा०
विशेष में एक उत्पन्न होवे. में यावत् एक
एक र० में
र०
में एक श० में चार तमतम प्रभा में उत्पन्न होवे यों पांच भांगे हावे. अथवा एक २० में दो शर्कर प्रभा में तीन बा० में यावत् एक र० में दो श० में तीन तमतम में इस तरह जैसे पांच जीव आश्री भांगे कहे वैने छ जीव के तीन संयोगी भांगे कहना विशेष में एक बढाना यों ३५० भांगे तीन संयोगी होवे. ऐसे ही चतुष्क संयोगी १०५ भांगे वैसे ही कहना यावत् दो बा० एक पं० एक धू० एक
* प्रकाशक- राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
१.३००