________________
स
८४ ॥ अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए, तिण्णि वालयप्पभाए होजा, एवं आव एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए, तिण्णि अहे सत्तमाए होज्जा ५ ॥ अहवा एगे रयणप्पभाए. दो सवारप्पभाए दो वालुयप्पभाए होजा एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए दो अहे सत्तमाए होज्जा ५ ॥ अहवा दो रयण
प्पभाए एगे सकरप्पभाए, दो वालुथप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा दो रयणभावार्थ एक तम प्रभा में गर एक पंक प्रभा में चार तमतम प्रभा में यों तीन, ऐसे ही दो, तीन तीन दो व चार एक
ऐसे १२ भांग होते हैं. और धूपभा में चार तम प्रभा में एक धूमपभामें चार तमतम प्रभा में एक यों तीन दो, दो तीन व एक चार के ६ भांगे जानना. और तम प्रभा में चार तमतम प्रभा में एक तम प्रभा में तीन बमतम प्रभा में दो तम प्रभा मे दो तमतप प्रभा में तीन और तम प्रभा मे चार व तमतम प्रभा में एक यो सब मीलकर ८४ भांगे हुए. इस के भांगे नीकालने की रीति. सातो नरक के द्विसंयोगी आश्री,
२१ पद होते हैं उन मे १४,२३, ३२, ४१ ऐसे विकल्प होते हैं इन २१ पद व ४ विकल्प का गुनाकार 50 करने से ८४ भांगे होते हैं. इनके तीन संयोगी२१० भांगे होते हैं सातो नरक के तीन संयोगी आश्री ३५पद १ और विकल्प ६ होते हैं ११३, १२२, २१२, १३१, २२१ और ३११, इन ३५ पद व ६ विकल्प का
गुनाकार करने से २१० भांगे हे वे. चतुष्क संयोगी सात नरक के ३५ पद और चारसंयोगी जीव
488 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 48808
नववा शतक का बत
| उद्देशा