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अहवा एगे रयणप्पभाए तिणि सक्करप्पभाए होजा, अहवा एगे रयणप्पभाए, तिण्णि वालुयप्पभाए होज्जा, एवं जाव एगे रयणप्पभाए तिण्णि अहे सत्तमाए होज्जा ६ ॥ अहवा दो रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए होजा एवं जाव दो रयप्पणभाए दो अहे . सत्तमाए होजा, ६ ॥ अहवा तिण्णि रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा तिण्णि रयणप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा ६॥ १८ ॥ अहवा एगे
सकरप्पभाए तिण्णि वालुयप्पभाए होज्जा, एवं जहेव रयणप्पभाए उबग्मिाहिं समं अहो गांगेय ! चारों जीव रत्नप्रभा में उत्पन्न होवे यावत् सातवी तम तम प्रभा में उत्पन्न हो यो असंयोगी सात भांगे होवे. अब द्वियोगी ६३ भांगे कहते हैं. १ एक रत्नप्रभा में तीन शर्कर प्रभा में. २ एक रत्नप्रभा में तीन बालु प्रभा में यावत् एक रत्नप्रभा में तीन तमतम प्रभा में यों ६ भांगे. दो रत्नप्रभा में दोशर्करप्रभा में यावत् दो रत्नप्रभा में दोतमतमप्रभा में यों भांगे और तीन रत्नप्रभा में एक शर्करप्रभा में यावत् तीन रत्नप्रभा में एक तम तमप्रभा में यों ६ सब मीलकर रत्नप्रभा आश्री द्विसंयोगी१८३
भांगे हुवे. अथवा एक शर्कर प्रभा में तीन बालु प्रभा में इस तरह जैसे रत्नप्रभा पृथ्वी के भांगे कहे वैसे लही शर्कर प्रभा के भांगे कहना इस तरह ५+५+५ यों १५ भांगे शर्कर प्रभा के हुवे. यों बालुप्रभा के 9 भांगे, १२ पंकप्रभा के? भांगे, धूम्रप्रभा के भांगे, तमप्रभा के तीन भांगे यो सब मलिकर १८+१+१२+
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी *
भावा
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुरदेवसहावजी मालाप्रसादजी *