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1. दो सक्करप्पभाए होजा जाव अहवा एगे रयणप्पभाए ! दो अहे सत्तमाए
होजा . अहवा दो रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए होजा, जाव अहवा दो रयणप्पभाए एगे अहे सत्तमाए होजा, अहवा एगे सक्करप्पभाए दो वालुयप्पभाए होजा, जाव अहंवा एगे सक्करप्पभाए दो अहे सत्तमाए होज्जा, अहवा दो सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होजा, जाव अहवा दो सकरप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होजा, एवं जहा सक्करप्पभाए वत्तव्वया भणिया तहा सव्वपुढवीणं भाणियव्वा
जाव अहवा दो तमाए एगे अहे सत्तमाए होजा ॥ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे तीनों ही रत्न प्रभा में उत्पन्न होवे यावत् सातवी तमतम में उत्पन्न होवे. यों असंयोगी सात भांगे हुवे. द्विसंयोगी ४२ भांगे बतलाते हैं. १ एक रत्न प्रभा में उत्पन्न होवे दो शर्कर प्रभा में उत्पन्न होवे, २ एक रत्न प्रभा में उत्पन्न होवे दो बालुपमा ३ एक रत्न प्रभा दो पंक प्रभा ४ एक रत्न प्रभा दो धृम प्रभा १५ एक रत्न प्रभा दो तम प्रभा ६ एक रत्न प्रभा दो तम तम प्रभा. अथवा ७ दो रत्न प्रभा में एक शर्करं प्रभा में ८ दो रत्न प्रभा में एक बालु प्रभा में ९ एक पंक प्रभा में १० एक धूमू प्रभा में ११ एक है। तम प्रभा में और १२ एक तम तम प्रभा में यों रत्न प्रभा की साथ द्वीसंयोगी बारह भांगे हुवे यों एक
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 4.98
नवा शक का बत्तीसवा उद्देशा 488
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