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________________ १२७३ शब्दार्थ 14 उद्वनें पु० पृच्छा गो० गौतम गो. नहीं सं० अंतर सहित पु. पृथ्वी काया उः उद्वते नि निरंतर पु० ११ पृथ्वी काया उ० उद्वते ए. ऐसे जा. यावत् २० वनस्पतिकाय णो नहीं सं० अंतर सहित उ० उद्वर्ते नि० निरंतर उ० उदर्ने सं० अंतर सहित भ० भगवन् बे० बेइन्द्रिय उ० उतें नि० निरंतर वे० बेइन्द्रिय उ० उद्रत गं० गांगेय सं० अंतर सहित बे० वेइन्द्रिय उ० उद्धर्ने नि० निरंतर बे० बेइन्द्रिय उ० उद्वर्ते ए० विऐसे ना० यावत् पा. वाणव्यंतर सं० अंतर सहित भ० भगवन् जो० ज्योतिषण च० चवे पु० पृच्छा गं० गांगेय सं० अंतर सहित च० चवे नि० निरंतर च० चो मा० यावत् वे. वैमानिक ॥ २॥ क० कितने __निरंतरं पुढवीकाइया उबटुंति एवं जाव वणस्सइ काइया णो संतरं उब्वटंति निरंतर । उवटंति ॥ संतरं भंते ! बेईविया उव्वदंति निरंतरं बेइंदिया उव्वदंति ? गंगेया ! संतरपि बेइंदिया उन्वटंति, निरंतरंपि बेइंदिया उज्वटंति. एवं जाव वाणमंतरा ॥ संतरं भंते ! जोइसिया चयंति पुच्छा ? गंगेया ! संतरंपि जोइसिया चयंति, निरंतरंपि जोइसिया चयति ॥ एवं जाव वेमाणिया ॥ २॥ कइविहेणं भंते ! पवेसणए भावार्थ, उद्धर्तते हैं ऐसे ही वनस्पति काया तक जानना. वेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, यावत् वाणन्यंतर अंतर सहित उद्वर्तते । हैं और निरंतर भी उद्वर्तते हैं. अहो भगवन् ! क्या ज्योतिषी अंतर सहित चवते हैं या निरंतर चवते है ? अहो गांगेय ज्योतिषी अंतर सहित चवते हैं और निरंतर भी चवते हैं. ऐसे ही वैमानिक का जानना पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मुत्र १ 484830 नववा शतक का बत्तीमवा उद्देशा 4.28
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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