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शब्दाथ
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सूत्र |
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
उ. उत्थान जा. यावत् पु० पुरुषात्कार पराक्रपसे ॥११॥ से• वह भ. भगवन् अ. श्राला से ० वेदे ग निन्दे ० हा गो० गौतम ए० यहां सं० सर्व प० परंपरा • विशेष उ० उदेआया वे दे णो नहीं अउदे नहीं आया वे वेदे ए. ऐसे जा. यावत् पु० पुरुषात्कार पराक्रम ॥ १२॥ से वह भं० भगवन् अ० आत्मा मे णि निर्जरे अ० आत्मा से ग० निन्दे हैं. हां गो० गौतम ए. यहां स० सर्व ५० परंपरा ण. विशेष उ० उदयान्तर ५० पीछे क० कीया क. कर्म नि० निर्मरे ए. ऐसे
॥ ११ ॥ सेणूणं भंते ! अप्पणा चेव 'वेदेइ, अप्पणा चेव गरहइ ? हंता गोयमा! है एत्थवि सव्वेवि परिवाडी, णवरं उदिण्णं वेदेइ, णो अणुदिन्नं वेदेइ. एवं जाव
पुरिसकार परक्कमेइवा ॥ १२ ॥ सेणूणं भंते ! अप्पणा चेव णिजरेइ अप्पणा चेव
गरहइ ? हंता गोयमा ! एत्थवि सव्वेवि परिवाडी, णवरं उदयाणंतरं पच्छा कडं कम्म कहना ॥ ११ ॥ अहो भगवन् ! जो स्वयं वेदता है, स्यं गर्हता है ? हां गौतम : यहाँपर सब परि-al पाटो पहिले जैसे कहना. इस में उदय आये हुये कर्म वेदते हैं इतना ही विशेष हैं और पुरुषात्कार पराक्रमतक पहिले जैसे कहना ॥ १२ ॥ अहो भगवन् ! जीव क्या स्वयं कर्म की निर्जरा करता है वो गहीं करता है ! हां गौतम ! यहॉपर उदयान्तर समय पश्चात् कृतकर्म निजैरे. इतना विशेष जानना .
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुवदेवमहायजी पालामतादजी
भावार्थ