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शब्दार्थ !
सूत्र
भावार्थ
१०३८- पंचमाङ्ग विवाह पण्णसि ( भगवती ) सूत्र
ते उस काल ते उत समय में वा वाणिज्य ग्राम ण० नगर हो० था व० वर्णन युक्त दू० दूतिपलाश अंतंकरेति ॥ सेणं भंते ! किं उढुं होज्जा अहेवा जहा अस्गेच्चाए जात्र तदेकदेसभाए
होज्जा, ॥ सेणं भंते ! एगसमएण केवइया होज्जा ? गोयमा ! जहणणेणं एक्कोवा दोवा तिण्णिवा, उक्कोसेनं अट्ठसयं से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ सोच्चाणं केवलि रसवा जान केवल उवासियाएवा जाव अत्थेगइया केवलणाणं उप्पाडेज्जा अत्थे गइया केवलणाणं णो उप्पाडेज्जा | सेवं भंते भंतेत्ति | नवम सबस्स एकतीस इमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ९ ॥ ३१ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे
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णामं णयरे होत्या वण्णओ दूइपलासे चेइए,
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दो. तीन उत्कृष्ट १०८ होते हैं. अहो गौतम ! इसे कारन से ऐसा कहा { यावत् उपासिका के वचन सुनकर केवली प्ररूपित धर्म यावत् केवल ज्ञान कितनेक को नहीं प्राप्त होता है. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं.
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गया है कि सोच्चा केवली कितनेक को प्राप्त होना है और यह नववा शतक का एकतीसवा ॐ
( उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ९ ॥ ३१ ॥
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. एकतीस उद्दशेने केली के वचन श्रवण करनेसे ज्ञानादि गुनकी प्राप्ति होती है ऐसा कहा वह केवलज्ञान
नवनः शतकका बत्तीसवा उद्देश
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