________________
१२६८
48 अनुवादक-बालब्रह्मवारी पनि श्री अमोलक ऋषिजी -
तिसु संजलण माण माया लोभेसु होज्जा, दोसु होजमाणे दोसु संजलण माया लोभेसु होज्जा, एगंभि होज्जमाणे एगमि संजलण लोभे होज्जा ॥ तस्सणं भंते ! केवइया अझवसाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा एवं जहा असोच्चाए तहेव जाव केवल णाणं समुप्पजइ॥सेणं भंते केवलि पण्णत्तं धम्मं आघवेज्जवा,पण्णवेजवा परूवेजवा?हता गोयमा ! आघवेज्जवा, पण्णवेजवा, परवेज्जवा ॥ सेणं भंते ! पवावेज्जवा मुंडावेज्जवा ? हंता ! पवावेज्जवा, मुंडावेज्जवा ॥ सेणं भंते ! सिज्झइ बुज्झइ जाव अंतकरेइ ? हंता जाव अंतकरेइ॥ तस्सणं भंते! सिरसावि सिझंति जाव अंतकरेंति ? हंता सिझंति जाव अंतंकरेंति ॥ तम्सणं भंते ! पसिस्सावि सिझंति ? एवंचव जाव। बुझते हैं यावत् सब दुःखों का अंत करते हैं ? हां गौतम ! उन के शिष्यों भी सीझते हैं बुझते हैं यावत् , सब दुःखों का अंत करते हैं अहो भगवन् ! क्या उन के प्रशिष्य सीझते हैं यावत् सब दुःखों का अंत करते हैं ? हां गौतम ! उन के प्रशिष्यों भी सीझते हैं यावत् सब दुःखों का अंत करते हैं. अहो भग
वन् ! क्या वे ऊर्थ में होवे, अधो में होवे व तिर्यक् में होवे ? अहो गौतम ! जैसे असोच्चा कंवली का * कहा वैसे ही जानना. अहो भगवन् ! वे एक समय में कितने होते हैं ? अहो गौतम : जघन्य एक,
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ