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सवेदए होजा किं इत्थी वेदए होज्जा पुच्छा ? गोयमा ! इत्थी वेदएवा होज्जा, पुरिसवेदएवा होजा, पुरिसणपुष्पग वेदएवा होज्जा॥सेणं भंते सकसाई होजा अकसाई होजा ? गोयमा ! सकसाई वा होज्जा अकसाई वा होजा, । जइ अकसाई १२६७ होज्जा, किं उवसंत कसाई होजा, खीणकसाई होजा ? गोयमा! णो उवसंत कसाई होज्जा, खीणकसाई होज्जा, जइ सकसाई होज्जा, ॥ सेणं भंते ! कइसु कसाएसु होज्जा ? गोयमा ! चउसुवा तिसुबा दोसुवा, एकमिवा होज्जा,
चउमु होज्जमाणे चउसु संजलण कोह माण माया लोभेसु होज्जा, तिसु होज्जमाणे भावार्थ तीन में मान माया व लोभ और चार में क्रोध, मान, माया व लोभ. अहो भगवन् : इन को कितने
अध्यवसाय कहे हैं ? अहो गौतम : असंख्यात अध्यवसाय कहे हैं. शेष केवल ज्ञान उत्पन्न होवे वहां ब.
तक असोच्चा केवली जैसे कहना. अहो भगान् ! वे क्या केवली प्रणित धर्म कहे, प्ररूपे ? डा गौतम ! १० वे केवली प्ररूपित धर्म कहे व प्ररूपे. अहो भगवन् ! क्या वे दीक्षा देवे व मुण्डित करे ? हां गौतम !
दीक्षा देवे व मुण्डित करे. अहो भगवन् ! क्या वे सीझे, बुझे यावत् सब दुःखों का अंत करे ? हां oo गौतम ! वे सीझे, बुझे यावत् सब दुःखों का अंत करे. अहो भगवन् ! क्या उन के शिष्य भी सीझत हैं
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 4880
नववा शतक का एकतीसवा उद्देशा
उद्दशा 88