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48 अनुवादव. गालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी gk
सुक्कलेस्साए ॥ सेणं भंते ! कइसु णाणेसु होज्जा ? गोयमा ! तिसुवा चउसुवा हौजा तिसु होजमाणे तिसु आभिणिबोहियणाण सुअणाण ओहिणाणेसु होज्जा, चउसु होजमाणे आभिणिबोहियणाण सुअणाण ओहिणाण मणपज्जवणाणसु होजा ॥ सेणं भंते ! किं सजोगी होज्जा अजोगी होज्जा ? एवं जोगोवओगो संघयण संठाणं उच्चत्तं आउयंच एयाणि सव्वाणि जहा असोचाए तहेव भाणियब्वाणि ॥ सेणं भंते ! किं सवेदए पुच्छा ? गोयमा ! सवेदएवा होज्जा, अवेदएवा होजा जइ अवेदए होजा किं
उवसंतवेदए होजा खीणवेदए होजा? गो !नो उवसंतवेदए होजा खीणवेदए होजाजइ उच्चत्व, आयुष्य, कहना. अहो भगवन् : क्या वे सवेदी हैं या अवेदी हैं ? अहो गौतम ! सवेदी होवे अथवा अवेदी भी होवे ? यदि अवेदी होवे तो क्या उपशांत वेदी होवे या क्षीण वेदी होवे ? अहो गौतम ! उपशांत वेदी होवे नहीं परंतु क्षीण वेदी होवे. यदि सवेदी होवे नो स्त्री वेदी,पुरुष वेदी व पुरुष नपुंसक वेदी की होवे. अहो भगवन् ! क्या वे सरुषायी होवे या अकषायी होवे ? अहो गौतम ! वे सकषायी होवे और अकषायी भी होवे. यदि अकषायी तो क्षीण कषायी होने परंतु उपशांत कषायी होवे नहीं और सकषायी होवे तो एक, दो, तीन व चार पायी होवे. एक में संज्वलनका लोभ
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी
भावार्थ
माया