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________________ १२६५ भवइ, सेणं सोचा केवलिस्सवा जाव उवासियाएवा, केवलि पन्नत्तं धम्मं लभेज सवणयाए केवलंबोहिं बुझजा जाव केवलणाणं उप्पाडेजा,तस्सणं अट्ठमं अट्ठमणं अणिक्खित्तेणं तवो कम्मेणं अप्पाणं भावमाणस्स पगइभद्दयाए तहेव जाव गवेसणं करेमाणस्स ओहिणाणे समुप्पज्जइ,सेणं तेणं ओहिणाणेणं समुप्पण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइ भाग, उक्कोसेणं असंखेजाइं अलोए लोअप्पमाण मेत्ताई खंडाइं जाणइ पासइ ॥ सेणं भंते ! कइसु लेस्सामु होजा ? गोयमा। छसु लेस्सासु होज्जा, तंजहा-कण्हलेस्साए जाव भावार्थ यह है कि यह अष्टम भक्त तप कर्म निरंतर करते, हुए आत्मा को भावते हुए, भद्रिक प्रकृत्यादिक गुणों से युक्त साधु होते हुए सूत्र अर्थ के सन्मुख हुवा, ज्ञानचेष्टा, अमोहा, धर्म ध्यान के दूसरे पक्ष को अवलंबन करते, अबधि ज्ञान की प्राप्ति करे, उस में वह जघन्य अंगूर का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट संपूर्ण लोक व लोक जितने वडे अलोक में असंख्यात खंडवे होवे तो जाने देखे. अहो भगवन् ! यह ज्ञान कितनी लेण्या में होवे ? अहो गौतम ! कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या इन छही लेश्याओं में होवे. अहो भगवन् ! यह कितने ज्ञान में होवे ? अहो गौतम ! मति श्रुत व अवधि से तीन ज्ञान में अथवा मति, श्रत अवधि व मनःपर्यव ऐसे चार ज्ञान युक्त होते. अहो भगवन् ! यह सयोगी होवे या अयोगी होवे ? अहो गौतम ! 1- यह सयोगी होते परंतु अयोगी नहीं होवे. ऐसे ही अमोच्चा केवली की तरह उपयोग, संघयन,, संठाण, 44पंचमांग विवाह पप्णत्ति (भगवती मूत्र नववा शतकका एकतीसवा उद्दशा | ।
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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