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भावार्थ
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भवगती) सत्र
होजमाणे सहावइ, वियडावइ, गंधावइ, मालवंत परियाएसु वटवेयड्ड पब्बएसु होजा, साहरणं पडुच्च, सोमणसवणेवा, पंडगवणेवा होजा, अहे होजमाणे गड्डएवा दरीएवा होजा, साहरणं पडुच्च पायालेवा भवणेवा होजा, तिरियं होजमाणे पण्णरससु कम्म १२६३
भूमीसु होजा, साहरणं पडुच्च अढाइजदीव समुद्दतदेकंदेसभाए होजा ॥ तेणं भंते ! . है एगसमएणं केवइया होज्जा ? गोयमा ! जहण्णणं एक्कोवा, दोवा, तिण्णिवा उक्कोसणं
दस से तेणट्रेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ असोचाणं केवलिस्सवा जाव अत्थेगइए बुझे यावत् सब दुःखों का अंत करे. अहो भगवन् ! क्या वे ऊर्ध में होवे अधो में होवे या तिर्यक् में होवे? अहो गौतम ! ऊर्थ, अधोव तिर्यक तीनों दिशी में होते हैं. ऊर्ध में शब्दापाति, विकटपाति, गंधाई पाति, माल्यवंत, वगैरह जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अभिप्राय से हेमवंत, हरिवर्ष, रम्यक् वर्ष, एरणवय आकाश . में गमन करने की लब्धि से जाते हुवे केवल ज्ञान होवे देवता के साहरन आश्री मेरुपर्वत के सोमनस वन व पंडक वन में होवे. अधोदिशी में अधोगामिनी विजय, खड्डा पर्वत की खाई और साहरन आश्री महा पाताल कलश व भवनपति के भवन में होवे. तीछे क्षेत्र आश्री पनरह कर्म भूमि के क्षेत्र में, साहरन आश्री जम्बूद्वीप, धातकी खंड, अर्ध पुष्कर ऐसे अढाइ द्वीप, लवण समुद्र, कालोदधि समुद्र यों दो समुद्र इन के एक देश विभाग में होवे. भहो भमनन् ! ऐसे सिद्ध एक समय में कितने होवे ? अहो गौतम ।
43438:ना शतकका एकतीसचा उद्देशा
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