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20- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र ९.
जाव विसंजोएइ अगंतेहि मणुस्स भवग्गहणेहितो अप्पाणं विसंजोएइ अणंतेहिं देव भवग्गहणेहिं अप्पाणं विसंजोएइ जाओविय से इमाओ नेरइय तिरिक्ख जोणिय मणुस्स देवगइ नामाओ चत्तारि उत्तरप्पगडीओ तासिं च णं उवग्गहिए अणताणुबंधी कोह,माण,माया,लोभं खवेइ २त्ता अपच्चक्खाण कसाए कोह,माण, माया, लोभे खोइ २त्ता पञ्चक्खाणावरणे कोह,माण, माया, लोभे खवेइ २ त्ता,संजलणे कोहमाण माया लोभे खवेइ २ ता पंचविहं नाणावरणिजं, नवविहं दरिसणावरणिजं, पंचविहं
अंतराइयं ताल मच्छा कडं चणं मोहणिजं कटु कम्मरय विकिरणकरं अपुव्वकरणं उपष्टंभ दाता होवे, अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, व लोभ, अप्रत्याख्यानी शोध, मान, माया, व लोभ प्रत्याख्यानी क्रोध, मान, माय व लोभ व संजलन क्रोध, मान, माया व लोभ इन. सोलह प्रकृतियों का क्षय करे वैसे ही मति ज्ञानावरणीयादि पांच, चक्षु दर्शनावरणीयादि नव, दानांतरायादि पांच, यो तीन कर्म की १९ प्रकृतियों का क्षय करे, जैसे ताड वृक्ष के मस्तक का छेदन होने से उस वृक्षका नाश होता है वैसे ही मोहनीय कर्म का नाश होने से छेदाया हुवा मस्तकवाला ताल समान मोहनीय का नाश कर कर्मरूप रजका विक्षेप करण कर के विखरने वाला होवे. ऐसा अपूर्व करण कि जो पहिले कदापि प्राप्त
30नववा शतक का एक सबा उद्देशा
भावार्थ
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