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अमोलक ऋषिजी +
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भावार्थ
- भंते ! किं सकसाई होज्जा अकसाई होज्जा ? गोयमा ! सकसाई होजा; नो अकसाई
होजा, जइ सकसाई होज्जा, सेणं भंते ! क्सु कसाएसु होज्जा ? गोयमा ! चउसु संजलण कोह माण माया लोभेसु होजा ॥ तस्सणं भंते ! केवइया अझवसाणा ५०? गोयमा ! असंखेजा अज्झवसाणा प० ॥ तेणं भंते ! किं पसत्था अप्पसत्था ? गोयमा ! पसत्था नो अप्पसत्था ॥ सेणं भंते ! तेहिं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं वड्डमा
हिं अणंतेहिं नेरइय भवग्गहणेहिंतो अप्पाणं विसंजोएइ अणंतेहिं तिरिक्ख जोणिय वह सकषायी होता है या अपायी होता है ? अहो गौतम ! सकषायी होता है परंतु अपायी नहीं होता है. अहो भगवन्! जब सकषायी. होता है तब कितनी कषायों में होता है ? अहो गौतम मज्वलन क्रोध, मान, माया, व लोभ में होवे. अहो भगवन् ! उस को कितने अध्यवसाय कहे हैं ? अहो गौतम ! उस को असंख्यात अध्यवसाय कहे हैं. अहो भगवन् ! क्या वे प्रशस्थ हैं या अप्रशस्थ हैं ? अहो गौतम वे प्रशस्थ हैं परंतु अप्रशस्थ नहीं हैं. अहो भगवन् ! उन प्रशस्त अध्यवसायों से अनागत काल के नारकी के भव से आत्मा को अलग कर, अनंत तियेच के भव से आत्मा को अलग करे, अनंत मनुष्य के भव से अलग करे, अनंत देव भव से आत्मा को अगल करे, यों चारों गति का संधन करे, नरक सिर्यच मनुय व देवता इस नामकी चारों नाम कर्म की मूल व उत्तर प्रकृतियों और इस समान अल्प प्रकृनियों को
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादभी*
40 अनुवादक-बालब्रह्मच