________________
-
4082086
१२५३
पंचमान विधाह पण्णति (भगवत ) मन्त्र
नवरं केवल नाणावरणिजाणं कम्माणं खए भाणियव्ये, सेसं तं चैव, से तेण?णं गोयमा ! एवं बुच्चइ जाव केवलनाणं नो उप्पाडेजा ॥ ९॥ असोच्चाणं भंते ! केवालस्सवा जाव तप्पक्खिय उवासियाएवा, केवलिपन्नतं धम्म लभेज सवणयाए, केवलं बोहिं बुज्झेज्जा, मुंडे भवित्ता अगाराआ अणगारियं पन्चएजा, केवलं बंभचेरंवासं आवसना, केवलेणं संजमणं संजमेंजा, केवलेणं संवरेणं संवरेजा, केवलं आभिणि बोहियनाणं उप्पाडेजा जाव केवलं मणपजवनाणं उप्पाडेजा, जाव केवलनाणं उप्पाडेजा ? गोयमा ! असोचाणं केलिस्सवा जाव उवासियाएवा, अत्थेगइए
केवलिपन्नत्तं धम्म लभेन सवणयाए, अत्थेगइए केवलिपन्नतं धम्मं नोलभेज सवणयाए, साकर क्या केवल ज्ञान को प्राप्त कर सके ? अहो गौतम ! कितनेक केरल ज्ञानावरणीय के क्षय से केवल ज्ञान प्राप्त कर सके और कितनेक काल ज्ञानावरणीय का क्षय नहीं होने से प्राप्त नहीं कर सके ॥ १॥ अब उपर कहे हुए सब बोल समुच्चय कहते हैं. अहो भगवन् ! अमोच्चा केवली यावत् स्वयंबद्ध की उपा-100 निका के वचन सुनकर क्या केवली पणित धर्म श्रवण कर सके, शुद्ध सम्यक्त्व पाल सके, गृहवास छोड-17 कर मुंडित बन सक, गद्ध संपूर्ण ब्रह्मचर्य पाल सके, शुद्ध संयम पाल सके, शद्ध संवर कर मके, मति
नवा शतकका एकनीमचा उद्देशा 4.38
भावार्थ