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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
आभिणिबोहियनाणं नो उप्पाडेजा, सतेणट्टेणं जाव उप्पाडेजा ॥ ७ ॥ असोचाणं भंते! केवलिस्सा जाय केवलं सुयनाणं उप्पाडेजा ? एवं जहा आभिणिबोहियनाणस्स बत्तव्त्रया भणिया तहा सुयनाणस्सवि भाणियव्वा, नवरं सुयनाणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमो भाणियव्वा, एवं चेत्र केवलं ओहिनाणं भाणियव्वं, नवरं ओहिनाणावर णिजाणं खओवसमो भाणियव्वो, एवं केवलं मणपजवनाणं उप्पाडेजा, नवरं मणपजवनाणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमं भाणियव्वं ॥ ८ ॥ असोचाणं भंते ! केवलिस्सा जाव तप्पक्खिय उवासियाएवा केवलनाणं उप्पाडेजा, एवं व
वाले प्राप्ति नहीं कर सकते हैं. इस से ऐसा कहा गया है कि कितनेक मतिज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं। और कितने नहीं कर सकते हैं || 9 || असोच्चा केवली यावत् स्वयं बुद्ध की उपानिका के वचन सुनकर क्या श्रुतज्ञान प्राप्त कर सकते हैं ? अहो गौतम ! जैसे मति ज्ञान का कहा वैसे ही यहां जानना. मात्र श्रुत ज्ञानावरणीय का क्षयोपशम कहना. ऐसे ही अवधि ज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से अवधि ज्ञान प्राप्त करे. मनःपर्यत्र ज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से मनःपत्र ज्ञान प्राप्त कर सके इतनी भिन्नता निवाय शेष सब {मति ज्ञान जैसे कहना || ८ || अहो भगवन् ! असोचा केवळी यावत् स्वयंबुद्ध की उपासिका के वचन
* प्रकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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