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<१ ११ पंचगंग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 380
तेण?णं जाव नो संवरेजा ॥ ६ ॥ असोचाणं भंते ! केवलिस्तवा जाव केवलं आभिणिबोहियनाणं उप्पाडेजा ? गोयमा ! असोच्चाणं केवलिस्सवा जाव उवासियाएवा अत्थेगइए केवलं आभिणिबोहियनाणं उप्याडेजा, अथेगइए केवलं आभिणि बोहियनाणं नो उप्पाडेजा ॥ सेकणटेणं जाव नो उत्पाडेज्जा ? गोयमा ! जस्सणं आभणिबोहियनाणावराणजाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ सेणं असोच्चा केवलिस्सवा जाव केवलं आभिणियोहियनाणं उप्पाडेजा, जस्सणं आभिणियोहियनाणा
वरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ सेणं असोच्चाकेवलिस्सवा जाव केवलं क्षयोपशम हुवा होवे वे शुद्ध संवर पाल सकते " और जिन को नहीं हुवा होब वे नहीं पाल सकते हैं. इस से अहो गौतम ! ऐसा कहा गया है कि कितनेक शुद्ध संवर पाल सकते हैं और कितनेक नहीं पाल सकते हैं ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! असाच्चा केली यावत् स्वयं बुद्ध की उपालिका के वचन श्रवण कर क्या मति ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं ? अहो गौतम ! कितनेक कर मकते हैं और कितनेक नहीं भी कर सकते हैं. अहो भगवन् ! किन कारन से ऐना कहा गया है ? अहो गौतम ! आभिनियोधिक ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशन करनेवाले मति ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं और शयोपशम नहीं करने.
नववा शतक का एकनीसवा उद्दशा
भावार्थ