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अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
आगइए केवलं बोहि बुझेजा, अत्थेन इाए केवलं बोहि नो बुज्झेजा, अत्थेगइए केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पंवएज्जा, अत्थेगइए जाव नो पव्वएज्जा, अत्थेगइए केवलं बंभचेरवासं आवसेज्जा, अत्थेगइए केवलं जाब नो आवसेजा, अत्थेगइए केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, अत्थगइए केवलेणं संजमेणं नो संजमेज्जा, एवं संवरेणवि । अत्यंगइए केवलं अििणबोहियनाणं उप्पाडेजा, अत्थेगइए जाव नो उप्पाडेजा, एवं जाव मणपज्जवनाण, अत्यगइए केवलनाणं उप्पाडेजा, अत्थंगइए कंवलनाणं नो उप्पाडेजा ॥ से केणट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ असोच्चाणं तंचेव जाव अत्थेगइए कवलनाणं नो उप्पाडेज्जा ? गोयमा ! जस्स नाणावरणिज्जाणं कम्माणं
खओवसम नो कडं भवइ, जस्सणं दसणावरणिजाणं कम्माणं खआवसमे नो कडे की प्राप्त कर सके, श्रुत ज्ञान, अवधि ज्ञान, मन:पर्यव ज्ञान व केवल ज्ञान की प्राप्ति कर सके ? अहो गौम ! असोचा केवली यावत् उपासिका के वचन श्राण कर कितनक धर्म श्रवण कर सके यावत् केवल ज्ञान की प्राप्ति कर सके और कितनेक धर्म श्रवण यावत् केवल ज्ञान की प्राप्ति नहीं कर सके. अहो भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा गया है ? अहो गौतम ! जिन को ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय,
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्यालाप्रसादजी *
भावाथा
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