________________
30
वासं आवसेज्जा, जस्सणं चरित्तावरणिजाणं कम्माणं. . स्खओवसमे नोकडे. भवह. सेणं असोच्चा केवलिस्सवा जाव नो आवसेजा, सेतेणटेणं जाब नो आवसेजा ॥४॥ असोचाणं भंते ! केवालस्सवा जाव केवलेणं संजमेण संजमेजा ? गोयमा ! असो. च्वाणं केवलिस्सवी जाव उवासियाएवा अत्यगइए केवलेणं संजमेणं संजमेजा,अत्थेगइए केवलेणं संजमेणं नो संजमेजा।से केण?णं भंते! जाव नो संजमेजा ?गोयमा! जस्सणं जयणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ, सेणं असोच्चा केवलिस्सवा, जाब .
केवलेणं संजमेणं संजमेजा,जस्सणं जयणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमें नो कडे भवइ वार्थEहै वे असोचा केवली यावत् स्वयं बुद्ध की उपासिका के वचन सुनकर शुद्ध ब्रह्मचर्य पाल सकते हैं और
जिनोंने चारित्रावरणीय का क्षयोपशम नहीं किया होवे वे शुद्ध ब्रह्मचर्य नहीं पाल सकते हैं. ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! असोच्चा केवली यावत् स्वयं बुद्ध की श्राविका के वचन सुनकर क्या कोई शुद्ध संयम अंगीकार कर सकते हैं ? अहो गौतम ! कितनेक शुद्ध संयम अंगीकार करसकते हैं और कितनेक शुद्ध
संयम अंगीकार नहीं करसकते हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है। अहो गौतम ! पत्ता कवरणीय (चारित्र विशेष वीर्यातराय ) का क्षयोपशम जिन को हुआ.होवे वे असोचा केवली यावत स्वयं
पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र पंचमांग विवाह
wwwanmawanwwwwwwwwwwwwwww
नया शतकका एकतीसा उद्देशा
|
mmmmmar
-48