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સૂત્ર
भावार्थ
- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
नो कडे भवइ सेणं असोच्चा केवलिस्सवा जात्र केवलं बोहिं नो बुज्झेजा ॥ सेते द्वेणं जब नो बुझेजा || २ || असोच्चाणं भंते ! केवलिस्सा जाव तप्पक्खिय उवासियाएवा केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वएजा ? गोयमा ! असेोच्चाणं केलिस्सा जाव उवासियाएवा अत्थेगइए केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वज्जा, अत्थेगइए केवलं मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं नो पव्वएजा, । से केणट्टेणं जाव नो पव्वज्जा ? गोयमा ! जस्सणं धम्मंतराइयाणं कम्माणं खओव समे कडे भवइ, सेणं असोच्चा केवलिसवा जात्र केवलं मुडे भवित्ता अगाराओ और जिनोंने दर्शनावरणीय का क्षयोपशम नहीं किया है उन को शुद्ध सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती | है || २ || अहो भगवन् ! अमोच्चा केवली यावत् स्वयं बुद्ध की उपासिकाओं के वचन सुनकर शुद्ध द्रव्य भाव से मुंडित होकर गृहस्थावास का त्यागकर के क्या साधुपना प्राप्त कर सकते हैं कितनेक साधुपना प्राप्त कर सकते हैं. और कितनेक साधुपना नहीं प्राप्तकर सकते हैं. किस कारन से कितनेक साधुपना प्राप्तकर सकते हैं और कितनेक नहीं प्राप्त कर सकते हैं ? अहो गौतम ! जिन को धर्मतिराय कर्म का क्षयोपशम हुआ होवे वे असोच्चा केवली यावत् स्वयं बुद्ध की उपा
? अहो गौतम ! अहो भगवन
नवत्रा शतक का एकनीसा उद्देशा
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