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शब्दार्थ
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अनुव दर-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सूनने को से० वह ते. इसलिये गो० गौतम ६० ऐसा बु० कहां जाता है तं० उस को जा. गावत् ०१ नहीं लंक प्राप्त करे स० सूनने को ॥ १ ॥ सरल शब्दार्थ ॥ - -
धम्मं नो लभेज सवणयाए ॥ से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ, तंचेव जाव नोलभेज सवणयाए ॥ १ ॥ असोचाण भंते ! केवलिस्सवा जाव तप्पक्खिय उवासियाएवा केवलं बोहिं बुझेजा ? गोयमा ! असोच्चाणं केवलिस्सवा जाव अत्धेगइए केवलं बोहिं बुझेजा, अत्थेगइए केवलं बोहि नो बुझज्जा॥ से केणटेणं भंते ! जाव नो बुझेजा ? गोयमा ! जस्सणं दरिसणावरगिजाणं कम्माणं खआवसम कडे सेणं असोचा केवलिस्सवा जाव केवलं बोहिं बुझेजा, जस्सणं दरिसणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमे किया होवे उनको ऐसा लाभ नहीं मील सकता है. इस कारन से अहो गौतम ! ऐमा कहा है कि कितनेक को लाभ प्राप्त होता है और कितनेक को लाभ नहीं प्राप्त होता है. ॥ १॥ अहो भगवन् ! असोचा केवली यावत् स्वयं बुद्ध की उपासिकाओं के वचन सुनकर कोई शुद्ध सम्यक्त्व अनुभवे ? अहो ग कितनेक असोचा केवली यावत् स्वयं बुद्ध की उपासिकाओं के वचन सुनकर शुद्ध सम्यक्त्व अनुभव और कितनेक अनुभवे नहीं. अहो भगवन् ! किस कारन से कितनेक अनुभवे और कितनेक अनुभवे नहीं ? अहो गौतम ! ज़िनोंने दर्शनावरणीय का क्षयोपशम किया है उनको शुद्ध सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है।
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायनी पालाप्रसादी *
भावार्थ