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________________ RCH शब्दार्थ वरणीय क. कर्म का खः क्षयोपशम क० कीया भ० होवे से वह अ० अश्रुत केवली जा० यावत् त. सत्पाक्षिक उपासीकाके के. केवली १० प्ररूपा ध० धर्म को ल० प्राप्तकरे स०सूनने को जजिम को ना. ज्ञानावरणीय क. कर्म ख० क्षयोपशम नो० नहीं क. कीया भ० होवे से वह अ. अश्रुत के. केवली जा. यावत् त. तत्पाक्षिक उपासिकाके के केवली १० प्ररूपा ध० धर्म को नो० नहीं ल• प्राप्त करे स०, असोच्चाणं जाव नो लभेज सवणयाए ? गोयमा ! जस्संणं नाणावरणिजाणं कम्माणं __ खओवसमे कडे भवइ, सेणं असोचा केवलिस्सवा जाव तप्पक्खिय उवासियाएवा केवलि पण्णत्तं धम्मं लभेज सवणयाएः जस्सणं नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नोकडे भवइ सेणं असेोच्चा केवलिस्सवा जाव तप्पक्खिय उवासियाएवा केवलिपन्नत्तं भावार्थ श्राविका , उपासक, उपानिका, केवली के पक्षवाले सो स्वयंबुद्ध के श्रावक, श्राविका, उपासक व उपासिका के वचन सुनकर क्या केवलि प्ररूपित धर्म सुननेकालाभ मील सकता है! अहो गौतम ! कितनेक को केवली प्ररूपित धर्म श्रवण करने का लाभ भील सकता है और कितनेक को नहीं भी मील सकता है. अहो 50 भगवन् ! किम कारन से केवली प्ररूपित धर्म कितनेक श्रवण करने हैं और कितनेक नहीं श्रवण करते हैं ? अहो गोतम ! जिनोंने ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम किया होवे वे असोचा केवली यावत् स्वयं बद्ध * के उपासक के वचन श्राणकर धर्म श्रवण करने का लाभ प्राप्तकर सकते हैं. और जिनोंने क्षय नहीं है पंचमांग विवाह पण्णनि (भगवती) सूत्र 480 नववा शतकका एकतीसवा उद्देशा
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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