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शब्दार्थ 4 केवली प्राविका के० केवली उपासक के केवली उपासीका त तत्पाक्षिक श्रावक श्राविका त० ताक्षिक
उपासक त• तत्पाक्षिक उपासीका के० केवली ५० प्ररूपा ध० धर्म ल० प्राप्त होवे स सूनने को गो० गौतम अ. अश्रत केवली जा. यावत् त. तत्पाक्षिक उपासीका अ० कितनेक के. केवली ५० प्ररूपा धई धर्म को नो० नहीं ल. प्राप्त करे स० मनने को से. वह के. कैसे भं० भगवन् ए. एसा कु. कहा जाता है अ० अश्रुत जा. यावत् नो० नहीं ल० प्राप्त करे स. सूनने को गो० गौतम ज० जिसको ना० ज्ञाना
केवलिसावियाएवा,केवलिउवासगस्सवा केवलिउवासियाएवा,तप्पक्खियस्सवा,तप्पक्खिय सावगस्सवा,तप्पक्खिय सावियाएवा,तप्पक्खिय उवारूगस्सवा,तप्पक्खिय उवासियाएवा, केवलि पण्णत्तं. धम्म लभेज सवणयाए ? गोयमा ! असोचाणं केवालस्सवा जाव . तप्पक्खिय उवासियाएवा, अत्थेगइए केवाले पण्णतं धम्मं लभेज सवणयाए, अत्थे.
गइए केवलि पन्नत्तं धम्म नो लभेज सवणयाए से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ, भावार्थ
जिनोंने धर्म प्रतिपादक प्राकृत वचन का श्रवण किये बिना ही केवल ज्ञानकी प्राप्ति की उन्हे असोचा केव-17
कहते हैं और सुनने से केवल ज्ञानादिक की प्राप्ति हुइ उसे मोच्चाफेवली कहते हैं. इस तरह दोनों केवलीका। वर्णन इस उद्देशे में कहते हैं. राजगृह नगरके गुणशील नामक उद्यानमें श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कारकर श्रीगौतमस्वामी पूछनेलगे कि अहो भगवन्! असोचा केवली, असोचा केवली के श्रावक,
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *