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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
( पच्चास जो० योजन स० शत किं किंचित् विशेषाधिक प० परिधि प० प्ररूपी से० ए० एक प० एक एक व वनखंड से सः सर्व बाजु स० घेराया दो० दोनों का प० प्रमाण व० वर्णन युक्त ए० ऐसे ए० इस क० क्रम मे ज० जैसे जी० जीवाभिगम में जा० यावत्तः शुद्धदेत द्वीप जा० किंचिविसे साहिए परिक्खेवेणं प० ॥ सेणं एगए पउमवरवेइयाए एगेणय वणखंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते दोपहवि पमाणं वण्णओय ॥ एवं एएणं कमेणं जहा जीवाभिगमे जात्र सुद्धदंतं दीवं जाव देवलोग परिग्गहाणं ते मणुया ॥ प० ॥ समणारहे हुवे हैं. उस द्वीप में रहनेवाले मनुष्योंका आठ सो धनुष्य का देहमान है, पल्योपम के असंख्यातवे भाग का आयुष्य है, चतुर्थ भक्त आहार की इच्छा उत्पन्न होती है. पृथ्वीरस, फल, व पुष्प का आहार {करते हैं. पृथ्वी रस सक्कर जैसा मधुर है, वृक्षों के गृह में रहते हैं युगल युगलणी का आयुष्य जब छ मास का रहता है तत्र युगलणी को एक युगल ( पुत्र पुत्रा ) होता है. उन की ८१ दिनतक प्रतिपालना करते {हैं. उश्वासादि से मृत्यु पाकर देवलोक में उत्पन्न होते हैं वगैरह एक रुक द्वीप का वर्णन जीवाभिगम सूत्र से विस्तार पूर्वक जानना || ९ || ३ || अहो भगवन् ! दक्षिण दिशा का अवभासिक द्वीप कहां है ? अहो गौतम ! जम्बूद्वीप के चुल हिमवंत नामक वर्षधर पर्वत के दक्षिण व पूर्व चरिमांत से लवण समुद्र तीन सो योजन अवगाह कर जाने वहां दक्षिण दिशा का अवभासिक मनुष्य का अवभासिक नामक
44 पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती मृत -
नवत्रा शतक का ३-३० उद्देशा
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