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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ ।
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प० पच्चास ता० तारागण को० क्रोडा कांडी सो० प्रकाशें सो० प्रकाशते हैं सो० प्रकाशेंगे ॥ १ ॥ ० लवण समुद्र में भं० भगवन् के कितने चं० चंद्र पर प्रकारों ए० ऐसे ज० जैसे जी० जीवाभिगममें जा० यावत् ता० तारा ॥ २ ॥ धा० धातकीखंड में का० कालोदधि में पु० पुष्करवर में अ० आभ्यंतर पु० पु० पुष्करार्ध में म० मनुष्य क्षेत्र में ए० इन स० सर्व में ज० जैसे जी० जीवाभिगम में जा० यावत् ए० एक स० चंद्र परिवार ता० तारागण को ० क्रोडाक्रोडी ॥ ३ ॥ पु० पुष्करार्ध में भ० भगवन् कोडीणं सोभिसु सोभिति सोभिस्संति ॥ ॥ लवणं भंते ! समुद्दे केवइया चंदा भासिसुवा ३ एवं जहा जीवाभिगमे जाव ताराओ ॥ २ ॥ धायइखंडे, कालो, पुक्खरवरे, अब्भितरपुक्खरद्धे मणुस्सखेत्ते एएमु सव्वेसु जहा जीवाभिगमे जाव एससी परिवारो तारागण कोडि कोडिणं ॥ ३ ॥ पुक्खरणं भंते ! समुद्दे के हजार नवसो पचास क्रोडा क्रोड तारे गव काल में शोभे, वर्तमान में शोभते हैं और अनागत में शोभेगे. ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! लवण समुद्र में कितने चंद्रने प्रकाश किया, प्रकाशते हैं यावत् प्रकाशेंगे ? अहो गौतम ! चार चंद्रने गत काल में प्रकाश किया, वर्तमान में करते हैं और अनागत में करेंगे. चार सूर्य तपे, तपते हैं व तयेंगे. इन का परिवार उपर से दुगुना यहां लेना ॥ २ ॥ धातकी खंड में बारह चंद्रमाने (प्रकाश किया, करते हैं और करेंगे. बारह सूर्य तर्फे, तपते हैं और तपेंगे. कालोदधि में ४२ चंद्रने प्रकाश
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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