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शब्दार्थ
भावार्थ
43 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी.
+मा० यावत् भ० भगवन्त गो. गौतम ५० पूजते ए. ऐसा व० बोले क. कहां ज० जंबूद्वीप किं० किस *
सं० संठान वाला भ० भगवन् ज० जंबूद्रीप ए. ऐसे जं. जंबूद्वीप ५० पनति भा० कहना जा० यावत् । ए. ऐसे स० पूर्वापर सहित जं० जंबूद्वीप में चो चौदह स० नदियों स० लाख छ० छप्पन स. सहस्र भाग - वासमाणे एवं वयासी कहिणं जंबूद्दीवे दीवे, किं संठिएणं भंते ! जंबूद्दीवे दीवे? एवं जबूद्दीव पन्नत्ती भाणियब्वा, जाव एवामेव सपुत्वावरेणं, जबूद्दीवे दीवे
चोदस सलिला सयसहस्सा लप्पन्नंच सहस्सा भवंतीति अक्खायं सेवं भंते ! भंतेत्ति। कर पीछीगई यावत् भगवंत गौतम स्वामी पर्युपासना करते हुवे ऐसा पूछने लगे कि अहो भगवन् ! जम्बदीप कहां और इन का आकार कैसा है ? ओ गौतम ! जम्बूद्वीप सब द्वीपों में आभ्यंतर व सबसे छोटा एक लक्ष योजन का लम्बा चौडा चंद्रमा ममान गोलाकार यावन् १४५६००० नदियों इस में रही हुई हैं. गंगा, सिंधु. रक्ता व रक्तवती ये चार चौदह २ हनार के परिवार से हैं. रोहिता, रोहितांसा, सुवर्ण कुला और रूप्यकुला यह चार नदियों अठाइस २ हजार के परिवार से है हरिकांता, नरकांता नारीकांता ये चार नदियों५६ हजार २ नदियों के परिवार से हैं, और सीता से नदियों ५३२००० नदियों के परिवार स हैं यों सब मालकर १४५६००. नदियों जम्बूद्वीप में हैं. इस का विस्तार पूर्वक कथन जम्बूदीप प्रज्ञप्ति में से जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह
* प्रकाशक-राजांचहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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