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गोयमा ! नो पोग्गली पोग्गले । से केगटेणं ? गोयमा ! जीवं पडुच्च से तेण
टेणं एवं वुच्चइ सिद्धे णो पोग्गली पोग्गले ॥ सेवं भंते ! भंते ! त्ति ॥ है इति दसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १०॥ सम्मत्तं अट्ठमं सयं ॥ ८ ॥ + सिद्ध पुद्गली है या पुद्गल है ? अहो गौतम ! सिद्ध पुद्गली नहीं है परंतु पुद्गल है. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐमा कहा गया है ? अहो गौतम ! जीव प्रत्यायक ऐना कहा गया है कि जीव पुद्गली नहीं है" परंतु पुद्गल है. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं यह आठवा शतक का दशवा उदेशा पूर्ण हुआ। ८॥१०॥ आया शतक समाप्त हुआ॥ ८॥
भावार्थ
* अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋापजी 8
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायनी वालाप्रसादजी *