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( भगवती ) सूत्र
नामए छत्तेणं छत्ती, दंडेणं दंडी, घडेणं घडी, पडेणं पडी, करेणं करी, एवामेव गोयमा ! जीवेवि सोइंदिय चक्विंदिय घाणिदिय जिभिदिय फासिंदियाई पडुच्च पोग्गली । जीवं पडुच्च पोग्गले ॥ से तेण?णं गोयमा । एवं वुच्चइ जीवे पोग्गलीवि. पोग्गलेवि ॥ नेरइएणं भंते ! किं पोग्गली. पोग्गले ? एवं चेव, एवं जाव वेमाणिए, नवरं जस्स जइ इंदियाइं तस्स तइ भाणियव्वाइं॥ सिद्धेणं भंने! किं पोग्गली पोग्गले?
408420 आठवा शतक का दशमा उद्देशा
भावार्थ
कर्म पुद्गल रूप होने से पुद्गल आश्री प्रश्न करते हैं. अहो भगवन् ! क्या जीव पुद्गली या पुद्गल है ? अहो गौतम ! जीव पुद्गली भी है और पुद्गल भी है. अहो भगवन् ! किम कारन से ऐसा कहा गया है ? अहो गौतम ! जैसे छत्र का धारन करने वाला छत्री कहाता है, दंड का धारन करने वाला दंडी कहता है, घडे को धारण करने वाला घडी कहाता है. पटी से युक्त पटी कहा जाता है, कर को धारन करने वाला करी कडाना है वैने ही जीव श्रोत्र, घ्राण, रसना, व स्पर्शेन्द्रिय रूप पुद्गल को धारन करने
वाला होने से पुद्गली कहाता है, और जीव आश्री पुद्गल कहाजाता है. अहो गौतम ! इस कारन से ऐसा 3 कहा गया है. अहो भगवन् ! नारकी पुद्गली कहाने हैं या पुद्गल कहाते हैं ? अहो गौतम ! उक्त कथना
नुसार वैमानिक तक जानना. परंतु जिन मे जितनी इन्द्रियों होवे उतनी ग्रहण करना. अहो भगवन् ! क्या