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भावाथ
48 पंचमांग विशाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र १
णिज्जं तस्स आउयं, जस्स आउयं तस्स मोहणिजं ? गोयमा ! जस्स मोहणिजं तस्स आउयं नियमं अत्थि, जरस आउयं तस्ल मोहणिजं सिय अस्थि सिय नत्थि ॥ एवं नामंगोयं अंतराइयंच भाणियब्वं ॥१४॥ जस्स पुण भंते आउयं तस्स नाम पुच्छा ? गोयमा ! दोवि परोप्परं नियम, एवं गोत्तेणवि समं भाणियव्वं ॥ जरसणं भंते ! आउयं तस्स अंतराइयं पुच्छा ? गोयमा जस्स आउयं तस्स अंतराइयं लिय अत्थि सिय नत्थि;
जरस पुण अंतराइयं तस्स आउयं नियमं अत्थि ॥ १५ ॥ जस्सणं भंते ! नामं तस्स व अंतरायवाले को वेदनीय होता है ? अहो गौतम ! वेदनीयवालेको अंतराय क्वचित् होता है और क्वचित नहीं भी होता है. और अंतरायवाले को वेदनीय अवश्य होता है ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! मोहनीयवाले को आयुष्य व आयुष्यवाले को मोहनीय क्या होता है ? अहो गौतम ! मोहनीयवाले को आयुष्य अवश्य होता है और आयुष्यवाले को मोहनीय क्वचित् होता है और क्वचित् नहीं भी होता ऐसे हो नाम, गोत्र व अंतराय का जानना ॥१४॥ अहो भगवन् ! आयुष्य कर्मवालेको नाम कर्म व नाम कर्मवाले को आयुष्य कर्म क्या होता है ? अहो गोतम ! दोनों परस्पर सहचारी होने से अवश्य होते हैं ऐसे ही
जानना. और आयष्य कर्मवाले को अंतराय क्वचित होता है और बारहवे गुणस्थान पर क्षय होता है है तब आयुष्य कर्मवाले को नहीं भी होता है. परंतु अंतराय कर्म की साथ आयुष्प कर्म अवश्य रहता है ।
2022 आठवा शतकका दशवा उद्देशा84980