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भावार्थ
अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
उवरिमेहिं छहिं कम्मेहिं समं भाणियव्वं, जाव अंतराइएणं ॥ १२ ॥ जस्सणं भंते ! वेणिज्जं तस्स मोहणिज्जं, जस्स मोहणिज्जं तस्स वेयणिज्जं ? गोयमा ! जस्स वेयणिज्जं तस्स मोहणिज्जं सिय अत्थिसिय नत्थि, जस्स पुण मोहणिज्जं तस्स वेयणिजं नियमं अत्थि ॥ जस्सणं भंते ! वेयणिज्जं तस्स आउयं, एवं एयाणि परोप्परं नियमं जहा आउएण समं, एवं नामणवि, गोएणवि समं भाणियव्वं ॥ जस्सणं भंते ! वेयणिज्ज तस्स अंतराइयं, पुच्छा ? गोयमा ! जस्स वेयणिनं तस्स अंतराइयं सिय अत्थि सिय नत्थि जस्स पुण अंतराइयं तस्स वेयणिज्जं नियमं अस्थि ॥ १३ ॥ जस्सणं भंते ! मोह
* प्रगाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
जैसे ज्ञानावरणीय की साथ सात कर्मों का कहा वैसे ही दर्शनावरणीय कर्म की साथ छ कर्मों का जानना || १२ || अहो भगवन् ! जिस को वेदनीय है उस को क्या मोहनीय कर्म है और जिस को मोहनीय है उस को क्या वेदनीय कर्म है ? अहां गौतम ! वेदनीय कर्मवाले को मोहनीय कर्म काचित् { होता है और काचित् नहीं होता है केवली अश्री और मोहनीय कर्मवाले को वेदनीय कर्म अवश्य होता ई है. अहो भगवन् ! वेदनीयवाले को आयुष्य व आयुष्यवाले को वंदनीय होता है ! अहां गौतम ! दोनों की परस्पर नियमा है. ऐसे ही नाम व गांव की साथ कहना. अहो भगवन् ! वेदनीय कर्मवाले की अंतराय
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