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शब्दार्थ
सूत्र
मुनि श्री अमोलक ऋपिनीअनुवादक-पालब्रह्मचारी
भावार्थ
प. उनहोवे सशरीर कि किससे प० उत्पन्न हावे जी जीवसे १० उत्पन्नाव एएमम होते अ० है उ० उत्थान के कर्म व बल वा वीर्य पु० पुरुपात्कार ५० पराक्रम 1 मे वह शनिश्चय भं० भगान् अ० मात्मा से उ. उदीरे ग. निन्दे सं० संवरे है. हा गोर गौतम आ० आन्या मते तेही कहना
गोयमाः जीवप्पवहे एवंसइ अत्थि उट्ठाणइवा, कम्मेदवा, बलेश्यावीरिएडा पुरिसनार परकमेइवा ॥ ९ ॥ सेणूणं भंते , अप्पणाचेव उदीरेइ, अप्पणाचेव गरहइ, अप्पणा
चेव संवरइ? हंता गोयमा: अप्पणा चेव उच्चारेयव्यं । जंतंभंते । अप्पणा चेव उदीरेइ. वह शरीर के व्यापार से होता है. अहो भगवन् ! शरीर कैसे उत्पन्न होवे ! अहो गौतम जीव से उत्पन्न होवे+ यदि ऐसा होवे तो उद्यान-कार्य माधन के लिये खडे होला, कर्म-गपनादि कर्म करना, बलशरीर की सामर्थ्यता, वीर्य-उत्साह, पुरुषात्कार-पुरुपका अभियान, व पराक्रन-कार्य पूर्ण करना, इस में भी जीव की प्रधानता है. ॥२॥ अहो भगवन् ! कर्मबंधादिक में जीव की प्रधानता है तो क्या स्वयंही कर्म का की उदीरणा करे, स्वयही कृत कर्म की निन्दाकरे और स्वयंही संवर, अर्थात् कर्म करे नहीं? हां गोता स्वयंही कर्मकी उदीरणा कर यायतू स्वयं कर्म करे नहीं.अहो भगवन् जय जीव स्वयं उदीरता है,गहताहै,व संवरता है तो क्या है ___ + यपि शरीर में कर्म भी कारण है निष्केवल जीव ही कारण नहीं है, तथापि कर्म का कर्ता जीव होने से जीव से शरीर उत्पन्न होना कहा है.
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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