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पोग्गलात्थिकायप्पएसा किं दन्वं एवंचेव जाव सियदव्वाइं च दन्वदेसाय॥६॥केवइयाणं भंते ! लोयागासप्पएसा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेजा लोयागासप्पएसा पण्णत्ता ॥ एग मेगस्सणं भंते ! जीवरस केवइया जीव प्पएसा पण्णता ? गोयमा ! जावइया लोया गासप्पएसा एगमंगस्सणं जीवस्स एवइया जीवप्पएप्ता प० ॥७॥ कहाविहाणं भंते ! कम्म पगडीओप.?गोयमा!अट्रकम्म पगडीओप.तं नाणावरणिजं जाव अंतराइया नेरइयाणं ब भंते ! कइ कम्म पगडीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! अट्ट ॥ एवं सव्व जीवाणं अटकम्म
पगडीओ ठावेयवाओ जाववेमाणियाणं॥८॥नाणावरणिजस्सणं भंते! कम्मरस केवइया भावार्थ यावत् संख्यात असंख्यात व अनंत प्रदेश में आठ विकल्प कहना ॥ ॥ प्रदेश लोकाकाश अवगाही
होने से लोकाकाश का प्रश्न करते हैं. अहो भगवन् ! लोकाकाश के कितने प्रदेश कहे हैं ? अहो गौतम !! असंख्यात प्रदेशात्मक लोक होने से लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश कहे हैं. अहो भगवन् ! जीव के कितने प्रदेश हैं ? अहो गौतम ! लोकाकाश जितने जीव के प्रदेश हैं क्योंकि जब केवली समुदात होती है तब एक जीव के प्रदेश समस्त लोकव्यापी होते हैं ॥ ७॥ जीव के प्रदेश कर्म प्रकृति युक्त है। कर्म का प्रश्न का
- ! कर्म प्रकृतियों कितनी कही ? अहो गौतम ! कर्म की। ॐ आठ प्रकृतियों कही. ज्ञानावरणीय यावत् अंतराय. अहो भगवन् ! नारकी को कितनी कर्म प्रकृतियों हैं? *अहो गौतम ! नारकी को आठ कर्म प्रकृतियों हैं. ऐसे ही सब जीवों को आठ कर्म प्रकृतियों कही हैं ॥८॥१॥
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 88
2348337 आठया शतकका दशत्रा उद्देशा
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